Friday, November 29, 2013

Heroes: My walk back home


POW: Prisoners of war. The heroes on the battlefield but soon forgotten by the country. The heroes who struggle to maintain their identity in alien land, who wish to be home and nothing else. Have you ever thought about them? Try remembering them and think what do they go through every minute, every second.

My tribute to those heroes in various wars, the respect they deserve.. Their walk back home. The pics depicted here are real photos of just some Indian POWs in the wars of 1965, 1971...and many more.


I am a soldier

I fought for my country, my motherland

I cared for her freedom

Now I am a POW.

In an alien land I await my release

Hero in the eyes of my family, yet forgotten by my country

I await my freedom

Freedom to walk back to my country

Freedom to be a captive no more 

The memories refuse to die down

Days turned into months

Months into years

I refuse to become a memory

My family would be waiting for my return

Parents would be staring at the lane leading to the house

Hoping to catch a glimpse of their son

Defying their time, saying, “ Let him come first”


My beloved would be knitting a new hope everyday

Dressing everyday to greet me any second

Her hope would be rising like the morning sun and dimming just like the sunset, everyday

I cant comfort her loneliness at night

I vowed to be by her side all life

And here I am so far away from her

My children must have all grown up

I know they must be missing me every moment

The birthdays and celebrations would be subdued

How do I tell them I miss them too ?

I know they must be proud when they hear my name

Yet sad when they dont know whether I am dead or alive

I have found friends here

Many of them from the past wars

Confined to these walls, we have become used to call this as our “second” home

Yet I long for my first

I have no qualms about being captured

I am a soldier, it was my duty

As the years have gone by all I want now is my return back home

Or atleast the news to my loved ones that I am alive

Many here have faded into oblivion

But I refuse to become a memory

I await my walk back home

To my country

To my loved ones

To my motherland

My walk back home...

Thursday, November 28, 2013

The angels: My Comrades




In war when you are outnumbered and outgunned and all hope seems lost, you fall back upon your call for reinforcements to save you. I tried capturing this feeling in my thoughts this time, of being grateful to those who come to help the ones under fire in the heat of the battle, whether providing support or extracting them. The feeling of being " Reinforced" not limited to any country but common to every soldier.. My gratitude to the reinforcements who respond...just in time..

Coming under heavy fire 

I stare into instant death

My comrades injured, killed or fighting still

Bullet by bullet, shells spent, mags going empty

My gun begins to jam, yet my will keeps pressing the trigger

My call for reinforcement has been radioed

Yet I have to hold ground until they show up

The enemy draws near and I am forced to fire burst or save ammo

A grenade blasts near me and the dust makes it all darkness, impossible for me to see

The dust clears and I see my best friend writhing in pain

I drag him to safety and get on my job

I am on my last mag and see no sign of help

I pray to god to still the time or send help

Not for me but for my comrades first

Now I am out of ammo and loose all hope

Prepared for my doom I hear firing from above

Cannons firing, rockets exploding infront of me and the distant rumble of the engines and chopper blades

I look up to see my help arrive

I look up to see my angels arrive

As the fighters pound the targets supported by the gunships

I hear the sound of rumbling feet drawing near

I hear my comrades arrive

My enemy is falling back and I am still alive

My injured friends are being airlifted and I look around to see my loss

I will live today because of my friends

I will live today because I owe them my life

I will live today because my end had not come

I will live today because someday I have to save a life

Someday help for some waiting eyes just like me today

Someday a debt to be paid

Someday a duty to fulfill.....

Saturday, November 23, 2013

गुदगुदी ठहाकों के बीच भविष्य : अशोक चक्रधर




गुदगुदी ठहाकों के बीच भविष्य

चौं रे चम्पू

अशोक चक्रधर

चौं रे चम्पू! सुनी ऐ कै ओम प्रकास बाल्मीकि ऊ बिदा है गए। कोई किताब पढ़ी बिनकी? -‘जूठन।’ उनकी आत्मकथा पढ़कर तो मैं हिल गया था। पिछले पच्चीस-तीस दिनों से वैसे ही हिला हुआ हूं। मौत भी हिन्दी के वरिष्ठ लेखकों के पीछे ही पड़ गई है। कल जिंदगी की तलाश में निकला। शायद वहां मिले, जहां सब बराबर हों, खिलखिलाते हुए। जाति, धर्म, वर्ण, दलित, सवर्ण इन सारे सवालों के व्यावहारिक व सकारात्मक उत्तर देते हुए। -का कहि रह्यौ ऐ, कछू समझ नायं आय रई तेरी बात। -हमेशा ऐसा तो नहीं रहेगा चचा, जैसा अब तक हुआ है या जैसा हो रहा है। जो होना है और जो होगा, वह ज्यादा महत्वपूर्ण है। अतीत की कब्रों से कंकाल निकाल कर उनमें कोड़े लगाना कभी-कभी वाजिब लगता है क्योंकि इन्हीं कंकालों के अत्याचारों ने असंख्य लोगों को कंगाल और अंतत: कंकाल बनाया होगा। कितना दमन, कितना अत्याचार, कितना शोषण हुआ वर्णवादी व्यवस्था में, सोचो तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। लेकिन जिंदगी को उल्लास चाहिए। मैंने मॉरीशस में देखा था कि जब किसी घर में मृत्यु होती थी तो उसके घर के आगे लोग अपने घर की मेज-कुर्सी डाल देते थे, उत्सव मनाते थे, जुआ खेलते थे। मेला तब तक चलता था जब तक दुर्गम पर्वतों को पार कर रिश्तेदार न आ जाएं। उस छोटे से देश में भी पैदल आने में दो-तीन दिन लग जाते थे। तब तक अड़ोसी- पड़ोसी घर के आगे हंसते-खिलखिलाते और ठहाके लगाते थे। -जे तौ अजीब बात ऐ रे! उनका मानना है कि ऐसा करने से मौत भाग जाती है। अच्छा हुआ मुझे भी एक शरणगाह मिल गई। पिछले दिनों एक उत्साही युवक मिला, सिद्धांत मागो। उसने बताया कि चार महीने पहले कुछ मित्रों ने मिलकर ‘पच’ नाम का पोएट्री क्लब बनाया है। लगभग पचास युवा कवि सप्ताह में कहीं मिलते हैं और कविता और हंसी का उत्सव मनाते हैं। मेरी जिज्ञासा बढ़ी और मैं सचमुच उन लोगों के बीच पहुंच गया। 

कला, संस्कृति, व्यापार, वाणिज्य, सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग, एडवर्टाइजिंग क्षेत्र के लगभग तीस-पैंतीस युवक-युवतियां जमा थे। मुझे देखते ही खिल उठे और फिर मैंने सुनी उनकी कविताएं। -तैनै अपनी सुनाई कै नायं? -ऐसी जो कहीं नहीं सुनाता। पर उनकी ज्यादा सुनीं। चार घंटे ऐसे बीते कि मैं शोक से सचमुच अशोक हो गया। बंगलुरू के गोविन्द ने टूटी-फूटी हिन्दी में अपने तीसरे प्रेम की पहली कविता सुनाई। वह उच्चारण दोष के कारण खाली लड़की को काली लड़की बोल रहा था। प्रेम के नए-नए स्फुरणों की कविताएं थीं। युवा हंसते हैं तो बुक्का फाड़ कर हंसते हैं। जरा से विरह-वियोग की बात छू जाए तो मिलकर रोने लगते थे। हैरानी थी कि जब दीपाली ने शोर कविता सुनाई तो सबमें सन्नाटा व्याप्त हो गया।आविका ने ‘संडे’ सुनाई तो हंसी लौट आई। अनूप और आदित्य ने सामाजिक समस्याओं पर गहरे कटाक्ष किए। सौम्या की कविता ने कइयों को रुला दिया। सिद्धांत मागो की ‘गुदगुदी’ गजब थी। मैं मगन-भाव से सुनता और देखता रहा कि बीस से तीस के बीच का यह वर्ग अनुभवों से कितना संचित पर हिंदी की साहित्यिक परंपराओं से कितना वंचित है। इन्हें छंदोबद्ध कविता के व्याकरण का बोध लगभग नहीं था। साहित्य का गहरा ज्ञान भी नहीं था। जो था, वह था तात्कालिक अनुभव, दोस्तियां, प्रेम के प्रस्ताव, नई दुनिया बसाने के सपने और उन सपनों में आड़े आने वाले निराशा के घने बादल। फिर बादलों को चीरती बिजली की कोई कौंध और फिर से ठहाकों का अजस्र प्रवाह। -‘पच’ नाम चौं रख्यौ ऐ? -‘पच’ यानी पीएसीएच! पोएट्री एंड चीप ह्यूमर का लघु रूप। चीप ह्यूमर तो मैंने उनकी कविताओं में नहीं पाया। हां, एक खुलापन था संबंधों-अभिव्यक्तियों का - तानों-तिश्नों के साथ। पर इतना बताऊंगा कि पिछले एक महीने के लगभग हर तीसरे-चौथे दिन होने वाले मृत्यु के तांडव के बाद मुझे गुदगुदी और ठहाकों ने भविष्य के प्रति आशावान बनाया। 

शायद मौत अब हिंदी लेखकों पर न मंडराए।

बाल्मीकि जी को श्रद्धांजलि!

Friday, November 22, 2013

PACH 11 : PACHakradhar.... वाह वाह



सर ऑटोग्राफ

चक्रधर जी : किसके लिए ?

मेरे लिए

शोभित : अरे नाम बोल भाई 

श्वेताभ 
------------ चंद घंटे पहले --------

तुम आ रही हो न?

फिलहाल तो यह ही प्लान है

फिलहाल ? आना ही है... 2 महीने से टल रहा है , मेरे को न नहीं सुनना 

ठीक है , आ रही हूँ.

न जी यह असल ज़िन्दगी में कोई डेट का बुलावा नहीं है. यह तो 
बुलावा है PACH का अपनी दोस्त को. इतना ढिंढ़ोरा पीट रहा था 
इतने दिनों से इसके सामने कि चलो कविताओं के साथ कुछ नए 
लोगों से तो मिलो. किसे पता था कि इस PACH no . 11 पर झटका 
लगेगा सभी को.. बोलती बंद हो जायेगी, मुँह खुले रह जायेंगे, आँखें 
फटी, विश्वास ही नहीं होगा जिससे हम मिलेंगे इस बार..अदभुत. 1 
महीने बाद जा रहा था इस बार तो वक़्त पर पहुँचने का मन था. हम 
भी चल दिए - औरोबिन्दो सेंटर फॉर आर्ट्स एंड कम्युनिकेशन. वहाँ 
पहुँच कर Amphitheatre का रस्ता ढूँढ ही रहे थे कि पीछे से जानी 
पहचानी आवाज़ें आयी तो पलट कर देखने पर पता चला - अविका , 
नबीला, कमल आ रहे थे. सौम्या को फ़ोन मिला कर रास्ता पूछा, 
कंफ्यूज हुए, फिर पूछा. 5 मिनट तक यह ही चल रह था.


Basking in the sun

आखिर में जब पहुँचे तो सब ठण्ड में धूप सेंक रहे थे ( जैसे कि किनारे पर.... ) . आलस करते करते , इंतज़ार करते करते 12 से 1 हो गया. Official से 1 घंटा लेट. कुछ नए चेहरे दिखे और कुछ पुराने गायब. रूद्र , सुधांशु, नेहा कुलश्रेष्ठ गायब और अपने गिटार वाले अभिषेक भी. शुरू तो करना ही था तो कहानी शुरू हुई cross intro से..इसका वो देगा, वो इसका देगा. मेरे हिस्से फिर आया तलरेजा का. इस बार शराफत वाला intro दिया उसने तो सब बीच में टपक पड़े . " न न , इसका लवगुरु वाला दे. " बड़ी तेज़ याददाश्त है तुम लोगों की. सुबह कितने कितने बादाम खाते हो? Intro ख़त्म हुए सबके तो शुरू हुआ सर्दी में गर्मी सेंकते हुए कविताओं का सिलसिला.



पहला नंबर एकांक्षा का " आवारा मैं, आवारा तू " ... प्यार नहीं, उससे एक कदम आगे बढ़ जाने कि दास्तान. कहते हैं न दो प्रेमियों के रिश्ते को आगे ले जाना जब रात के आगोश में दो जिस्म एक हो जाते हैं. एक दिल जब इस एहसास को अपना लेता है. छोटी सी कविता मगर बेहद ज़बरदस्त. मोहब्बत के आगे कुछ सुनने को मिला. वह जी.



अगली थी PACH हीरोइन यानी की दिपाली. `The Tissue `. हाँ ही पतला सा रुमाल से भी छोटा जो हर जगह पाया जा सकता है- लेडीज पर्स में, wallet में, जेब में. कभी उसके दिल का हाल सुना है ? इस्तेमाल करके फ़ेंक दिया जाने वाला. कभी डस्टबिन में , कभी सड़क किनारे. पक्का use and throw वाला हिसाब. बोल नहीं सकता तो इसका यह मतलब तो नहीं न की इसके साथ यह सलूक करो. उसकी बात सुनो इस कविता में.


वैशाली की An elephant in the room एक कमरे में एक हाथी के होने की कल्पना. कमरे में होने के बावजूद उसके भाग जाने, सूंड से नमस्कार करने , कानों से हवा झलने जैसी कई सारी सोच. आप सोचते रहिये की हाथी क्या क्या कर सकता है. एक जानवर के साथ एक अलग कल्पना.



बचपन में हमारे कितने सारे हीरो होते थे न? चाचा चौधरी, ही मैन , स्पाइडरमैन और जाने क्या क्या. नवीन जी छा गए आप तो. हमारा बचपन आप वापस ले आये कॉमिक्स से बाहर निकाल के. बचपन के सफ़र पर फिर ले चले वो " Comics and superheroes" में. वो तलवार और ही मैन वाला स्टाइल " I have the power " कह कर लड़ने निकलना, स्पाइडरमैन की तरह बिल्डिंग्स के बीच में अदृश्य जाल फेंकना, मैरी जेन वाटसन को दिल देना , बुद्धा की तरह सच की खोज में निकलने का सोचना और फिर ख्याल छोड़ देना क्यूंकि इतनी खूबसूरत पत्नी को छोड़ना पड़ेगा. इसके मुक़ाबले स्पाइडरमैन ज्यादा अच्छा था. हवा में उड़ने की ख्वाहिश करना. सारे तो हीरो कवर कर दिए आपने. कुछ रहने ही कहाँ दिया ? वैसे.. आपके चरण कहाँ हैं ? कहाँ कहाँ तक सोच लेते हो आप ?




अभिषेक - बावर्ची turned कवि , PACH के लिए. जब से यहाँ आना शुरू किया है तब से सब्ज़ियों को छोड़ कर अल्फ़ाज़ों पर उतर आया है. Silent Noise - बाहरी शोर शराबे से दूर दो दिलों के अंदर का शोर, जज़बातों का शोर, धड़कनों के कुछ कहने का खामोश शोर और दिल का एक शोर जो कहे की मुझे कहीं दूर ले चलो इस शोर से. 
Rain - गिरती बारिश की बूँदें तुम्हारे चेहरे पर, चूमती तुम्हारे चेहरे को, घोल देती बीते हुए कल को और ले आती नया आना वाला कल. बारिश में भीग कर बस खो जाने का एहसास करा देती. इसको तो जैसे अब नशा ही चढ़ गया था कविता सुनाने का.


The Pihu performance- Anurag Uncle....

बिना ज्यादा कुछ जाने बगैर PACH में आयी थी प्रियंका. The 
surprise package कहा था मैंने इसे सौम्या को. यह जब आयी तब 
अभिषेक अपनी तीसरी सुना रहा था. हद है रे. रुक जा अब तो. जान ले 
कर ही मानेगा क्या ? नयी एंट्री की वजह से प्रियंका के इंट्रो की बात 
हुई मगर इसकी जगह सबको सुनने को मिला हमारी Wrong 
number दोस्ती का किस्सा. एक अदृश्य पीहू भी साथ आयी इसके 
जिसका रूप सबने तब देखा जब मेरी और अनुराग की क्लास लगी. 
वो ठहाके और पल कोई नहीं भूलेगा.



गोविन्द - ` दसवें PACH में तीसरा प्यार `. कह तो रहा था की पात्र काल्पनिक हैं मगर कौन मानेगा रे ? मुझे तो पता नहीं लगा की किस को देख कर इसका दिल मचल गया और इसे फिर से मोहब्बत हो गयी मगर सुनने में मज़ा आ रहा था. PACH में दिल देने के बाद अपने दिल की दास्ताँ सुना रहा था. ऐसा इश्क़ मुझे क्यूँ नहीं होता ?

The legend - Shri Ashok Chakradhar

इसकी कविता ख़त्म ही हुई थी की वो आये, वो जिनको टीवी पर देखा करता था, हास्य कवि सम्मलेन में - वाह वाह वाले अशोक चक्रधर जी. इनको देखते ही आँखों पर विश्वास नहीं हुआ. इनका स्वागत तालियाँ, और उससे भी तेज़ `Oh my god ` के साथ हुआ. हमारी महफ़िल अनिश्चितकालीन समय तक के लिए ठप्प हो गयी. सब उनको घेर कर ऐसे बैठ गए जैसे हम दादी माँ की कहानी सुनने के लिए बैठ जाते हैं. बिलकुल ख़ामोशी, सब उनको सुनना चाहते थे. इनकी पहली ही लाइन दिल को छू गयी, " मैं तो आज यहाँ सीखने आया हूँ " . क्या बात करते हैं सर, हम लोग क्या सिखा पाएंगे आपको ? शुरू हुआ अब कविताओं का हिस्सा उनके सामने.



दिपाली ने शुरू की " शोर है " . हमारे आस पास, हर चीज़ में शोर है फिर चाहे वो शोर हुक्के में हो, पहियों के चलने की आवाज़ में हो, किसी के क़दमों का हो, कलाइयों पर टकराती चूड़ियों का शोर हो, बातों का, रातों का शोर हो. बस एक जो शोर नहीं है वो तुम्हारी आवाज़ है. बाकी सब शोर ही है. गोविन्द ने दोबारा पढ़ी अपनी इनके सामने.



हमारी छोटी पटाखा बड़े धमाके करने वाली अविका . ज़रा अशोक जी भी तो सुनें की " आज तो सन्डे है न ". बेहद पसंद आयी उन्हें वो तो मुझे पता ही था. हुक्म का इक्का है वो पूरी.


Gudgudi ya makeup?

हास्य कवि हमारे सामने हो और हास्य कि बात न हो यह कैसे हो सकता है ? मागो किसलिए हैं ? गुदगुदी- Newton और Einstein का एक किस्सा जहां एक दूसरे को गुदगुदाने की कोशिश जारी है. खोजने चले थे अपने अपने laws और खोज हो गयी गुदगुदी की.कौन यह सच्चाई जानता है की Newton के Law of Gravity की खोज गुदगुदी की वजह से हुई थी ?

मेकअप - लड़कियों के मेकअप से इतना लुपे पुते होने के पीछे के सवाल , हॅसाते हॅसाते पेट में दर्द ही कर दिया. फिर तो जी इसके बाद आपको बिना मेकअप के ही लड़कियां अच्छी लगेंगी .



आदित्य - ग़ज़ल स्पेशलिस्ट. क्यूंकि हर कविता ग़ज़ल के तौर पर ही लिखी जाती है. SAUMYA KULSHRESHTHA के नाम पर लिखी गयी जो एक अनोखे अंदाज़ में , पहले कभी नहीं देखी. हर Alphabet के साथ शुरू होता एक वाक्य उसकी तारीफ़ में. यानी कि18 लाइन की ग़ज़ल एक नाम के ऊपर.


अनूप - ` गुमशुदा अरमान `. कुछ अरमान दिल में रह जाते हैं. हर अरमान अपनी भी कुछ कहानी कहता है. कुछ अरमान भी कभी कभी जीना सिखा जाते हैं या हमें ही कभी कभी उनसे जीना सीखना पड़ता है.

Saumya going estatic

सौम्या - `दास्तान` एक अधूरे प्यार की जिसके साथ एक एक लम्हा गुज़ारा था मगर अब उसके पास न होने पर सब चीज़े होते हुए भी नहीं थी. वो हाथ को थामना , वो प्यार करना, वो यादें कितना बेबस सा महसूस करा रही थी. उसकी कही हर बात याद आ रही थी मगर वो नहीं आ रहा था. बात कितनी अजीब है न इस अधूरी दास्तान की.


शोभित - बदल रहा है यह अब. कहाँ शुरू की थी इसने हँसाने की 
कोशिश मगर पिछले 2 बार से दिल पर उतर आया है. कितनी कहानी 
सुना गया यह दिल. किसी के मिल जाने के वक़्त दिल की हालत और 
उसकी बातें और टूट जाने के बाद का किस्सा. इश्क़ होने पर प्यार तो 
होगा ही. अपने किये इश्क़ कि याद ज़रूर आएगी, उसका बालों को 
सहलाना , गोद में सर रखना और उसके बदन कि खुश्बू से सब महक 
जाना. प्यार में यह छोटी छोटी चीज़ें कितने मायने रखती हैं.

Reciting his poem the first time

चक्रधर जी आयें और उन्हें हम ऐसे ही छोड़ दें, यह नहीं हो सकता. उन्होंने सुनाई हम लोगों को कविता जो उन्होंने आज तक कहीं नहीं सुनाई . हमारे लिए इससे ज़्यादा ख़ुशी और कहाँ होगी ? उस रात जब प्यार हुआ था और उस अँधेरे , रौशनी, चिड़िया, झाड़ी सब ने देखा था. वो नटखट सी शरारतें जो देख कर भी अनदेखा कर दी गयीं. चाहता तो हूँ कि उस रात के बारे में और लिखूँ मगर यह जानते हुए कि उनके लिए यह ख़ास है तो कद्र करते हुए बस इतना ही. बेहद लम्बी थी मगर गज़ब कि पकड़ थी उसपर भाव में, लय में, शब्दों पर. आज वो कोई हास्य कवि नहीं थे. वो एक गुरु थे, एक श्रोता. जिनको पूरा देश सुनता है वो आज हमें सुन रहे थे. बहुत कुछ सीखने के लिए है इनसे. हिंदी कविताओं के बारे में, भावों के बारे में.


प्रियंका - सपनो के ऊपर लिखी कविता. ज़िन्दगी में सपनों की अपनी अहमियत होती है. आँखों के अंदर रह कर भी बहुत कुछ दिखा जाते हैं यह हमें. सपने नहीं होंगे तो काम कैसे चलेगा ? सपने तो होने ही चाहिए. कविता के बाद मुझसे बोली कि विश्वास नहीं हो रहा कि पहला PACH था, पहली कविता, पहला मौका और वो भी चक्रधर जी के सामने. जब मेरा परिचय देने कि बात आयी तो मेरी तो बोलती ही बंद हो गयी. क्या बोलता ? कैसे बोलता ? कुछ समझ ही नहीं आ रहा था. बस ख़ुशी के मारे फूले नहीं समा रहे थे सब. Technologically भी काफी advanced हैं, भारत में इंटरनेट आने के वक़्त से ही उसे यूज़ कर रहे हैं, वेबसाइट है, माइक्रोसॉफ्ट के साथ मिल कर मंगल font के विकास में भी अपना योगदान दे चुके हैं. जितनी तारीफ़ करें उतनी कम है. इनके साथ इतने घंटे कैसे बीत गए पता ही नहीं चला. 

The hunt for the Autograph

जाने से पहले उनका ऑटोग्राफ लेने की भीड़ मच गयी. किसी का पेन, किसी की डायरी का पन्ना, किसी का फर्रा...सब इस्तेमाल में आ गया. कागज़ के लिए इतनी मारा मारी होते मैंने पहली बार देखी थी. उन्होंने लिखना शुरू किया तो अनुराग बोला, " अब इस पेन को मैं संभाल कर रखूँगा, कभी इस्तेमाल नहीं करूँगा." मैंने पकड़ी कमल की डायरी और पन्ना आगे करते हुए उनका ऑटोग्राफ ले लिया. उनके हर शब्द के बाद वो पन्ना अनमोल होता जा रहा था. जब वो चले गए तब हम लोगों को सच में होश आया. अब तक जैसे किसी के वश में थे. दिमाग में ताकत तब आयी जब केक, शादी की मिठाई ( योगेश और प्रतिभा ), सेब, चिप्स, अंगूर , ले अंदर गए. इस PACH पिक्चर का यह इंटरवल था. कहानी आगे भी तो जानी थी.

खाने पीने की चहल पहल के बाद नंबर आया सादिया का " इंतज़ार ". यादें हटा दें किसी की ज़हन से मगर आज कल के मॉडर्न Whatsapp, Viber, We chat से भी तो हटाना ज़रूरी है. एक हलकी फुल्की कविता लेकिन यादों के उन्ही जज़बातो के साथ जो हर कविता में होते हैं. इतनी हल्की लाइन्स भी मन को सुकून देती हैं.



Duet अगली मगर इसमें हीरोइन बदली थी इस बार. दिपाली और अनूप की जगह ज्योति और अनूप थे. नए दोस्तों को भी तो मौका मिलना चाहिए. कविता शुरू हुई तो दिपाली के चेहरे के expression मुझे ऐसे लगे जैसे किसी पिक्चर की हीरोइन अपने हीरो के साथ किसी दूसरी हीरोइन को देख ले तो. कुछ आधी अधूरी लकीरें हैं जिनको दोनों में से कोई एक पूरा कर देता है, इश्क़ है जो मिल कर पूरा बनता है, कविता आधी लिख कर एक छोड़ देता है तो दूसरा उसे पूरा कर देता है. ज़िन्दगी में जब दो लोग अपने अपने आधे हिस्से मिलाते हैं तभी तो सब कुछ पूरा होता है. हर चीज़ में जो अधूरी बात एक शुरू करके छोड़ रहा था , दूसरा उसे पूरा कर रहा था.



इति की कविता माँ के ऊपर. दिल और अलग भावों से निकल कर आती पहली कविता जो सच में किसी को समर्पित की गयी. उस माँ को जो 9 महीने कष्ट झेल कर जन्म देती है जीवन को. वो जो करती है उसके तो अंश भी हम सोच न पाएंगे. इसीलिए तो वो माँ है.


वरुण - Tweetathon विजेता. पंजाबी मज़ाकिया कविता - बनाएन ( बनियान ). शायद कोई पाकिस्तानी शायर थे. नाम नहीं याद मुझे. बस में बनियान बेचते हुए सेलसमैन के शब्दों में अपने सामान की तारीफ़ करते हुए यह. अपने को पंजाबी कम आती है मगर उसके हिंदी ट्रांसलेशन के लिए दिपाली है न. एक बार के बाद दोबारा पहने जानी वाली, बार बार वही साइज़ फिट आने वाली , बेकार होने पर बच्चों के काम आने वाली - 
बनियान.



मानसी - `ख्यालों की खिचड़ी `. आज की दुनिया, इसकी भाग दौड़, समाज के सवालों में खुद को ढूंढने की एक कोशिश. खुद से सवाल हैं की जो हो रहा है वो ऐसा क्यूँ है ? दिल चाह कुछ और रहा है और हो कुछ और रहा है. कहते हैं न की सोच और हकीकत में फर्क महसूस होता है. दुनिया के हिसाब से बेशर्म हैं या खुद से चलने पर दबंग ?



नबीला - ` वो पल ` जो याद दिलाते हैं हाथ में हाथ डाले साथ साथ घूमना, प्यार की बातें करना और वो कशिश जब आपका सबसे अच्छा दोस्त ही आपकी ज़िन्दगी में प्यार बन जाता है. उस अनुभव को कैसे बयान करें ? ` एहसास ` की झलक दिखी मुझे इस कविता में.



ज्योति - जाम के ऊपर एक अलग कविता. सड़क वाला जाम नहीं, हाथ में प्याले वाला जाम. थोड़ा नशा दिखा, थोड़ा सा सुरूर. इतनी बेहतरीन तरह से लिखा था की सुनने वाले का एक बार तो मन कर जाये की हाथ में शराब का गिलास ले कर try तो किया जाये. ना पीने वालों का दिल मचला देने के लिए काफी थी यह. इसके जवाब में विवेक ने पढ़ी अपनी शराब वाली. एकदम टक्कर की.



मेरा नंबर एक तरह से आखिर में ही आया और शायद दिल से मैं यह ही चाहता था. कविता सुनाने की कोई जल्दी नहीं थी . ` एहसास ` के बाद 
लिखी थी ` काजल `...उसके काजल पर. महीनों से मन था की इसे पूरी करूँ और लो यहाँ सुना भी दिया. इसके बाद जो मैंने बाँटा सबसे वो मेरी ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल 15 मिनट थे. यह कोई कविता नहीं थी, ना ही कोई चीप humour ..यह थी मेरी असल ज़िन्दगी का हिस्सा. 
 " 22 स्पेशल "...वही 22 स्पेशल जिसे लिख कर दिल के संदूक में बंद कर रखा है. जिसकी अहमियत मेरे इलावा और कोई नहीं समझ पायेगा. इसको यहाँ इसलिए बाँटा क्यूंकि मुझे पता था की शायद यह लोग समझ पाएं. मैंने सिर्फ इतना ही कहा कि , " इसका दर्द बढ़ेगा तो लिखना कि बंद कर दूँगा". आसपास कि सारी आवाज़ें आनी बंद हो गयी थी फिर भी सुनाई दिया, " श्वेताभ ऐसा क्यूँ ? ". रूंधे हुए गले, डबडबाती आँखों से शुरू किया. अच्छा था कि उस वक़्त अँधेरा था तो मेरी आँखें कोई देख नहीं 
पाया. मामला इतना खराब हो गया कि मुझे सहारा देने के लिए मागो और सौम्या दोनों को ही आना पड़ा. हिम्मत तो शायद अभी भी नहीं है उस बारे में लिखने की.



हम आपकी क्यूँ करें ? कमल का यह सवाल भी था और कविता भी जो अपने घर वालों से पूछ रहा था की हम उनकी मर्ज़ी से हर काम क्यूँ करें ? फिर चाहे वो पढ़ाई हो या अपना कैरियर चुनना. हर घर और हर इंसान की कहानी. वही जंग जो हर घर में होती है. मान गए भाई तुझे. कैमरे के साथ साथ इस पर भी महारथ हासिल है तुझे.



बीते हुए कल, आज और आने वाले कल की कहानी थी अनुराग की कविता. उस चित्र के रंग कहूँ या दिल के जज़्बात, बस समझ नहीं आया. एक लम्बे समय में तीन अलग अलग काल में बदलते दिल के ख्याल थे उसमें. प्यार कैसे कैसे वक़्त के साथ बदलता है यह बस दिल ही जानता है.



नेहा कुलश्रेष्ठ का " कान्हा ". मुझे मालूम है की यह मेनन है मगर यहाँ तो दोनों की पहचान ( सौम्या + नेहा ) twins के तौर पर है तो चाहे सौम्या मेनन कहूँ या नेहा कुलश्रेष्ठ क्या फर्क पड़ता है ? खुद तो नहीं आयी मगर फिर भी कान्हा भिजवा दी. राधा की बोली कान्हा के लिए, फिर वो अधूरी हो उसकी और वो उसका आधा हो. युगों युगों से चली आ रही प्रेम कहानी का नया रूप. कान्हा के प्रेम में दीवानी राधा , नेहा की ज़ुबानी.


Singing and dancing at the end

महफ़िल खत्म हुई मोहम्मद रफ़ी के दो गानों के साथ सौम्या की आवाज़ में. ढ़लती शाम, छाये हुए अँधेरे में अपने दिल का दर्द बहुत कम लोगों के साथ बाँट कर मैं चला आया. एक दिन में इतना कुछ देख लिया - नए दोस्तों से मिले, एक हस्ती को देखा, अपना दर्द कुछ बाँटा और कुछ अपने में रखा. एक बात चक्रधर जी की हमेशा याद रहेगी , " PACH की
खासियत है इसका informal होना और यह ही इसको इतना शुद्ध रखता है. जिस दिन यह competitive हो जायेगा उस दिन इसमें यह बात नहीं रहेगी ".
 जो लोग आये उनकी तो चाँदी हो गयी....


Wearing the shawl of honor and our group pic
जो आये PACH पाये.

जो ना PACH ताये.

The priceless autograph which has now been laminated


चक्रधर जी ने हम लोगों के बारे में अखबार में क्या लिखा वो यहाँ पढ़िए -

 

Saturday, November 16, 2013

वो चेहरा.. क्या बात थी





आज सुबह दिखी एक बेइंतेहा खूबसूरत लड़की , गज़ब की मासूमियत. ऑटो में मुश्किल से 15 मिनिट के साथ में मुझे तो इश्क़ हो गया यारों... वो चेहरा...क्या बात थी.. दिल के जज़्बात बस लिख डाले- बिना सुर, लय, ताल के... इश्क़ हो गया यार..

वो चेहरा.. क्या बात थी

जन्नत से उतरी हुई कोई अप्सरा थी क्या या सिर्फ एक लड़की पता नहीं

वो खूबसूरती, वो मासूमियत उस चेहरे पर.. क्या बात थी

गुलाबी सूट में इतनी खूबसूरत जैसे खिलता कमल 

और दिल घायल करने के लिए आँखों में काजल 

सुबह कि ठंडी हवा में लहराती उसकी खुली ज़ुल्फ़ें.. हाय क्या बात थी 

दिल छलनी कर गयी उसकी एक नज़र 

आवाज़ कोयल से भी मीठी 

कुछ दूर तक का साथ था अपना मगर दिल चाहता न था उससे अलग होना 

ठंड में काली जैकेट का हुड डाल कर अपनी दुनिया में खोयी थी वो और मैं खोया था उसमें 

कितनी बार नज़रें उठा कर उसे शीशे में देखा , मैं तो गिनती ही भूल गया 

दिल मेरा कहता रहा... अब मैं गया, अब मैं गया 

उसको भी पता लग गया होगा कि एक दीवाना हो गया उसका 

वो मंद मंद मुस्कान कैसे भूल जाऊँ ? 

मन तो किया उसके साथ दो कदम और चला जाऊँ 

वो 8 .45 पर चल दी अपनी राह 

तू कल फिर नज़र आ.. मेरे दिल कि यह ही चाह 

इश्क़ हो गया यार उसको देख कर 

धड़कने बढ़ा गयी वो अनजाने में 

सोच रहा हूँ दिल का इलाज ढूँढूँ अब किसी दवाखाने में 

अब तो रोज़ उससे मिलने कि ख्वाहिश सी है 

वो धरती या स्वर्ग- न जाने कहाँ की है??

बस इतना पता है... की इश्क़ हो गया यार उसको देख कर...

Thursday, November 14, 2013

Captivating : Google Reunion




Partitions divide countries, friendships find a way...

The India-Pakistan partition in 1947 separated many friends and families overnight. A granddaughter in India decides to surprise her grandfather on his birthday by reuniting him with his childhood friend (who is now in Pakistan) after over 6 decades of separation, with a little help from Google Search.

Enjoy the Google ad and remember your long lost friends from childhood... Well done Google.. Bravo