Sunday, August 21, 2016

आजादी क्या है ?


Chipko movement

आजादी क्या है ?

खंडर वाली इमारतों को बचाना या उसकी टूटी ईटों पे अपने इश्क का नाम कुरेदना

मुल्क की विरासत वाली इमारतों को बचा के रखना या धर्म के नाम 
पर उनको गिरवा देना

आजादी क्या है ?

इतने सालों की जंग के बाद खुली हवा में साँस लेना या देश में एक 
दूसरे को लड़वा कर सिर्फ अपने लिए एक आज़ाद हवा में साँस लेना

दहशतगर्दों के मरने पे मातम मनाना या शहीदों की शहादत पे फक्र 
से दो आंसूं बहाना

आजादी क्या है ?

संस्कृति बचाने के नाम पर एक नदी किनारे को तबाह कर देना या घर
पे गमले में उगते पौधे को देख कर खुश होना

एक खुशहाल परिवार के साथ रहना या अपनी स्वार्थी ख़ुशी के लिए
बच्ची को कोख में ही मरवा देना

अपने बच्चे पे अपनी पसंद थोपना या उसे अपनी पसंद से किसी का 
होने देना

दहेज़ के लिए किसी की बेटी को तडपाना या बहू को ही बेटी मान 
लेना



ठुकराए जाने पर किसी का चेहरा तेज़ाब से जला देना या यह करने से पहले 100 बार सोचना कि घर पे किसी के साथ ठीक ऐसा ही हुआ 
तो ?

घर वालों को वृधाश्रम छोड़ आने की कवायद या जाड़े की सर्द रात में 
किसी बेसहारा को रैन बसेरा छोड़ आने की एक कोशिश

आजादी क्या है ?

सड़क हादसे में घायल हुए लोगों को खून में लथपथ देख तमाशबीनो 
की भीड़ या खून की एक पुकार पर किसी अनजाने को खून देने 
पहुंची लोगों की भीड़

जंगली कह कर मज़े के लिए एक जानवर को मार देना या एक 
जानवर को बचाने के नाम पे एक इंसान को खत्म कर देना

थाली का खाना यूँ ही बर्बाद करना रोज़ या गरीबों के वास्ते रोज़ 2
 रोटी ही सही किसी रोटी बैंक में दे आना

परिंदे को पिंजरे में क़ैद कर घर की चाहरदिवारी में रख लेना या उसे 
आज़ाद कर आसमान में उड़ने देना

4 साल तक अपनी सहूलियत के लिए एक ही खेल का प्रोतसाहन 
करना या रोज़ हरेक खेल को बढ़ावा देना

चंद नंबरों के लिए दीवारें फाँदना या चंद बच्चों के साथ मुश्किल नंबरों 
के पहाड़ को तोड़ देना

आजादी क्या है ?



कंक्रीट के जंगलों को बढ़ाकर प्रगति के नाम पे गरीबों की ज़मीनें ले
लेना या भूखे किसान के लिए दो जून रोटी का जुगाड़ करना

किसी धर्म के खिलाफ हिंसा करना या उसी धर्म के लंगर में भूखों को
 प्रसाद देना

किसी मंदिर की चौखट पे किसी का आना रोक देना या खुले दिल से 
हर धर्म के आने वालों का स्वागत करना

पेड़ों को काट कर अपना घर बनाना या उनको बचाने के लिए एक
आन्दोलन की शुरुआत करना

लाल बत्ती पे जल्दी निकलने की होड़ या हरी बत्ती होने पर भी पीछे से 
सायरन बजाती एम्बुलेंस के लिए रास्ता खाली करने की कोशिश

विदेशों में हमलों पर फ़ौरन झंडे लगाने की आदत या अपने देश में हुए हादसों में घायल लोगों के लिए भी 2 मिनट रुक कर सोचना

आजादी क्या है ?

सिर्फ कागज़ी आजादी स्वतंत्र होने की पहचान नहीं

ज़रुरत है अपनी ज़िन्दगी में रोज़ आज़ाद महसूस करना , बिना किसी बंदिश या शर्तों के

आजादी यह है ....


The story behind this- Even after so many years, we might have gained independence long ago on paper but in reality we are still slaves of customs, diktats, politicial pressure and what not. Everyday we struggle to act between what we think as might be right or might be wrong, we are crushed between such choices. This is our story – of how we really act, be it incidents of everyday life or international events.. This is sadly what happens and this is what we need to get rid off.. this is just a small number which I have tried to write, a lot more happens than I can recall. You might be able to get the exact references if you pay attention to some really closely.

Sunday, August 7, 2016

मैं कश्मीर नहीं सियासत हूँ...



Lal chowk

मैं कश्मीर नहीं सियासत हूँ

मैं स्वर्ग में आग भड़काकर राजनीतिक रोटियाँ सकने की कवायद हूँ

मैं अपने फायदे के लिए कश्मीर के अवाम को रोज़ रोज़ शहर बंद 
करने का हुक्म हूँ

मैं हर चप्पे पे चिपके इश्तेहार में कश्मीर छोड़ देने की धमकी का 
खौफ हूँ

मैं काले झंडे लहराकर कर्फ्यू लगाने की सियासत हूँ

मैं उन्ही झंडों की साज़िश हूँ जो एक ही मुल्क में रहते बाशिंदों के 
देश्भक्त और देशद्रोही होने की पहचान कराते हैं

मैं उन्ही काले झंडों की आड़ में अपने मुल्क की बर्बादी का और दूसरों की 
साजिशों की आवाज़ हूँ

मै कश्मीर नहीं सियासत हूँ

मैं सियासत की बिसात पर चलाया गया मोहरा हूँ

मैं नज़रबंद लोगों के हाथों की कठपुतली हूँ

मैं दूसरे मुल्क की नापाक ख्वाहिश और अपने मुल्क की राजनीति के 
पाटों के बीच पिसता प्रदेश हूँ

मैं छोटी सी बात को तिल का ताड़ बनाने की साज़िश हूँ

मैं एक भड़काई हुई भीड़ के हाथों में पत्थर दे हिंसा भड़काने की
सियासत हूँ

मैं लोगों के हाथों में बस्ते, किताबें, थैलों की जगह पत्थर वाली आम
बात हूँ

मैं एक छोटी बच्ची को प्यादा बना भीड़ में भेजकर फौजियों के सामने 
खड़ा कर देने की कोशिश हूँ

बिगड़ते हालात में उसी बच्ची की मौत पे सियासी सफ़र लम्बा करने 
वाले नेताओं की सोच हूँ




मैं मौका देख बाहर आने वाले मानवाधिकार वालों का दोगलापन हूँ

मै कश्मीर नहीं सियासत हूँ

मैं रोज़ रोज़ लाल चौक पे लगाये कर्फ्यू का सन्नाटा हूँ

मैं ज़बरदस्ती के प्रदर्शन की भीड़ में बेवजह अपने मुद्दे का तमाशा हूँ

मैं अखबारों में छपने वाली वो सफ़ेद जगह की सच्चाई हूँ जो आँखों के
सामने होकर भी मायने नहीं रखती क्यूंकि वो काले अक्षर ज्यादा 
मायने रखते हैं 

मैं न्यूज़ चैनलों की चिल्लाती बहस की चिल पुकार के बीच एक 
खामोश ज़बा हूँ

मैं खुद को पत्रकार कहने वाले लोगों की विपरीत सहानुभूति के बीच 
दम घुटता माहौल हूँ

मै कश्मीर नहीं सियासत हूँ

मैं भीड़ से घिरे फौजी की खुद को न बचा पाने की झुंझलाहट हूँ

मैं मुठभेड़ में शहीद जवानों का खून हूँ

मैं आतंकवादियों के मरने पे लोगों के मातम और सिपाही की शहादत 
पर पसरा सन्नाटा हूँ

मैं दुश्मनों को मारने के लिए एक घर को जला देने की मजबूरी में उस 
घर से निकलता धुआं हूँ

मैं दहशतगर्दों के किये धमाके में उड़ता जिस्म हूँ

मै कश्मीर नहीं सियासत हूँ

मैं पर्यटकों के इंतज़ार में डल पे जमी बर्फ हूँ

मैं प्रकृति के कहर के आगे मौजूद विवशता हूँ

मैं कश्मीर नहीं , कुछ समय बाद शायद किताबी जन्नत हूँ 




The story behind this- Kashmir is always the bone of contention for which no explaination is needed. These lines portray the stark dark reality of the state which is there these days and kashmir is misused these days by everyone and if this continues one day it would remain as heaven only in history and books. It time to stop and ponder over its state, you`ll find kashmir speaking its problem in every line.