कुछ हफ्ते पहले किसी काम से एक दुकान पे गया था . बाहर निकलते वक़्त देखा कि एक माँगने वाली एक reverse होती गाड़ी के पीछे चलते जा रही थी हाथ में कुछ कागज़ लिए हुए जैसा होता है न यह लोग अपने साथ इलाज वगैराह के पर्चे ले कर चलते हैं दिखाने के लिए . दूसरी तरफ कोई 10-11 साल का लड़का भी किसी गाड़ी का शीशा साफ़ करते वक़्त कुछ कह रहा था.
जब मैंने अपने स्कूटर में चाभी लगायी तो मैं खुद किसी सोच में डूबा हुआ था . अचानक से किसी ने मुझे भैया बुलाया तो ध्यान टूटा , देखा तो वही लड़का कह रहा था “ भैया चप्पल दिला दो”... उसको टरकाने की कोशिश की तो खुद ही बोला , “ भैया पैसे नहीं मांग रहा हूँ, पैर जल रहे हैं, चप्पल दिला दो “ खैर था तो वो नंगे पैर. अब उस वक़्त मेरे दिमाग में एक साथ सौ बातें चल रही थी. घर पे बोल के आया था कि 20 मिनट का काम है अभी आया, यहाँ तो अचानक से एक और बीच में पड़ गया, बटुए में पहले अपने काम के लिए पूरे पड़ जाएँ वही बहुत है. एक bata की दुकान के इलावा कोई जूता चप्पल दुकान नहीं है और वो भी 100 मीटर दूर है .
कोई भरोसा नहीं कि वो औरत इसकी कुछ लगती हो, इसको चप्पल दिलाने ले गया और वो पीछे से हंगामा मचा दे तो क्या पता चप्पल दिलाने की दया कहीं भारी पड़ जाए, पैसे तो इसको दूंगा नहीं उसके लिए....मगर इन सबसे ज्यादा ज़रूरी तो यह ख्याल था कि मंदी का समय है, खुद के future का सोच के पैसे बचाओ पहले, यह सब सेवा वाले काम बाद में होते रहेंगे.
“भई जा किसी और से मांग ले , परेशान न कर “, कह कर वहाँ से चल तो दिया मगर यही सोचता रहा कि इस मुश्किल वक़्त में Charity begins at home सच में पहले अपने घर के हालात देखकर करना पड़ता है, दूसरों के मदद के किस्से तो हम लोग पढ़ लेते हैं मगर जब खुद को करना पड़ता है तो इतना आसान नहीं होता... और तो और trains से मैं इतना सफ़र कर चुका हूँ वो भीख माँगने वाले गैंग देख देख कर कि नहीं पता कौन सच में ज़रूरतमंद है और कौन धोखेबाज़ ?
सच में नहीं पता मदद के मामले में क्या सही है क्या गलत .....
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