किस्सा छोटा ही सही मगर आज भी हमें बताता है कि थोड़ी सी इंसानियत तो रहनी ही चाहिए, अच्छा लगता है...
होली से कुछ दिन पहले एक AC लेनें की कायावाद चल रही थी. घर वाले सब देख – दाख चुके थे, बाकी मुझे छुट्टियों में आ कर लेने चलना था. होली से एक दिन पहले उस सेल्समेन को फ़ोन किया जिसने AC घर वालों को दिखाया था कि कितने बजे के बाद वो दुकान पे मिलेगा ? वो होता है न जब सेल्समेन कहते हैं कि साहब जब आप लेने आएगा तब जितना कम हो सकेगा उस वक़्त करवा लिया जाएगा.
पता चला कि वो हॉस्पिटल में है , उसके बच्चे का एक्सीडेंट हो गया है, पट्टी वगैरह करवा रहा है . हमसे कहने लगा कि 2 बजे तक मैं पहुँच जाऊंगा और अगर आपको जल्दी हो तो दुकान पे चले जाइये , मैंने वहाँ बात कर रखी है. हमने भी यह कह कर बात तब तक के लिए टाल दी कि जब आप पहुँच जाओगे हम तब आ जायेंगे. खैर 2 बजे के बाद दुकान पर पहुंचे तो होली सेल के चक्कर में वैसे भी थोड़ी भीड़ थी. पापा ही जानते थे उसको . हम दोनों से नमस्कार किया उन्होंने. होंगे कोई 50 साल के, ऐनक लगाए . उन्होंने सोचा होगा की दाम पे बात होगी मगर किसी के कुछ भी कहने से पहले मेरा पहला ही सवाल था – “ अब आपका बच्चा कैसा है ?” दो पल के लिए उनके चेहरे पे आये हैरानी के भाव मुझे साफ़ दिख गए . उन्होंने झट से हमें अपना फ़ोन निकाल कर फोटो दिखाई... घुटने पे प्लास्टर. पता चला एक्टिवा गिट्टी पे फिसल गयी थी.
3-4 मिनट तो हम लोग चोट की ही बात करते रहे, सामान का तो ज़िक्र ही नहीं आने दिया. वो खुद ही कहने लगे कि अब AC देख लीजिये. खरीद फरोख्त तो होती ही रही उसके बाद. भले ही हमारी खरीद से उनकी year end closing में थोड़ा फायदा हुआ हो मगर बच्चे के हाल चाल पूछ कर मुझे लगा कि हमने शायद एक पिता की घबराहट और बेचैनी कुछ पल के लिए तो दूर कर ही दी होगी. इंसानियत आज भी कोई चीज़ है भाई साहब.
सेल्स के आंकड़ों को छूकर अपनी नौकरी बचाने की ज़रुरत देर से दुकान पे आने की वजह का कभी कभी सबूत मांग लेती है – और सबूत थी वो फ़ोन में खिची हुई फोटो.
No comments:
Post a Comment