Memories

The places where moments reside

PACH 8 : गिटार, खाली कप और दोस्त


Aavika : आज तो Sunday है न

My name is Azum as or Azam

तारीख पे तारीख, तारीख पे तारीख .. गोविन्द : महीने की या साल की ?

नबीला ... नबीला ...

Happy birthday to you, Happy birthday to you....Happy birthday dear Pratibha

यह काला कलर क्या है? फ़ूड कलर है.... एक पीस मुझे भी

रूद्र शुरू हो जा बंगाली में...श्रुति रट ले .. ट्रांसलेट कर दियो

प्रयास रुक जा...2 min...बस 2 min. प्रयास : chill .... chill ...

रूद्र : तू कैसे जायेगा ? गोविन्द: बस मैं उधर से निकलूँगा .. मैं : अबे सीधे सीधे बोल न लिफ्ट चाहिए

Hello I am Rohini, who is not from Rohini

कुनाल: यह Poem मेरे father की है.... तो फिर अपनी वाली भूल जा और अंकल की ही पढ़

खोला, खाया, खत्म.... Happiness


अरे अरे चकरा गये न इतना सब देख कर? इससे भी कहीं ज़्यादा हुआ इस बार तो. तो चलिए मेरे साथ उस सफ़र पर जिसे PACH कहा जाता है...

मैं : हौज़ ख़ास विलेज? अब यार यह कहाँ है? कौनसा मेट्रो स्टेशन पास पड़ेगा ? ग्रीन पार्क या हौज़ ख़ास ? ग्रीन पार्क ? हौज़ ख़ास विलेज के पास तो हौज़ ख़ास स्टेशन होना चाहिए न ?

दोस्त: तू ज़्यादा दिमाग मत लगा. बस ऑटो कर लियो.

मैं: पैदल जा सकते हैं क्या ?
दोस्त: अबे ओ सठियाए हुए इंसान, होशियारी मत करियो

एक शाम पहले यह ही बात हुई थी मेरी मेरे दोस्त से जब पता चला था की इस बार सबको हौज़ ख़ास विलेज आना है. यानी फिर गया मेरा दिन और मेरी नींद. आस पड़ोस ही रख लेते कहीं... ट्रैकिंग रुट्स suggest कर दिए. छुट्टी के दिन भी अगला स्टेशन, दरवाज़े बायीं ओर खुलेंगे सुनना पड़ेगा. 12 बजे का समय था मगर सन्डे को 1 बजे से पहले सब कुछ जल्दी ही लगता है. निकले तो वक़्त से ही थे मगर जाम में फँस गये . 75 मिनट में 22 स्टेशन...कोई चांस नहीं. शान्ति से मेसेज भेजा सौम्या को कि लेट हो जाउँगा और बस पकड़ ली मेट्रो. जितनी तेज़ मेट्रो सन्डे को चलती है उतनी रोज़ ही चलायें तो DMRC वालों का क्या चला जायेगा? कोशिश की थी लेट होने की मगर मज़ाक मज़ाक में टाइम पर पहुँच गये ग्रीन पार्क . लोग क्या सोचेंगे यार ? लेट होने का बोल कर टाइम पर आता है. Credibility क्या रह जायेगी?खैर बाहर निकल कर ऑटो किया और चल दिए.

" लीजिये आ गये " . ऑटो वाला मुझसे बोल . मैं आँखें फाड़ कर पूछ रहा था ये ही है? हाँ... मेरे सामने थी बिल्डिंग्स और एंट्री बैरियर पर साइन था " Welcome to hauz khaas village " . मैंने तो सोचा था की नाम विलेज है तो झोपड़ी टाइप लुक होगा. बेवक़ूफ़ बन गये रे. जाना था Kumzum ट्रेवल कैफ़े. सीधा सीधा रास्ता पकड़ा और जब घूम गये तो PACH के GPS को फ़ोन किया (सौम्या ). जब बाहर पहुँचे Kumzum के तो भाई साहब आँखें फटी की फटी रह गयी, अन्दर अनूप..जी हाँ अनूप बिशनोई खड़े थे. वक़्त से पहले, बिफोर टाइम. चमत्कार. अनूप, सौम्या , नवीन सब मेरे से पहले थे. जब तक मैं वहाँ लगी फोटो देख रहा था तो औरों ने भी आना शुरू कर दिया था.



करन, गोविन्द, नेहा, रोहिणी... इस बार मैं जाने पहचाने चेहरों के बीच था. खूबसूरत हैं.... मैं वहाँ लगी फोटो की बात कर रहा हूँ ( पता नहीं क्या क्या सोच लेते हैं? ) . मोंडे पर बैठ जाओ, गद्दी पर पसर जाओ, बस फैल जाओ और शुरू हो जाओ. इस बार काफी लोग थे. मेरे दिमाग के P 4 मदरबोर्ड पर I 7 प्रोसेसर ने जैसे ही लोड डालना शुरू किया वैसे ही वहाँ चाय आ गयी. आराम... System on मेन पॉवर . सौम्या की बैटरी तो Dairy Milk fruit and nut और Bournville थी. इसका काम चॉकलेट से ही चल जाता है. वो अलग बात है की मेरी और गोविन्द का Bournville पार करने का प्लान सफल नहीं हुआ. Intro session पिछली बार की तरह शुरू हुआ और इसी के साथ शुरू हुई अनूप की रनिंग कमेंट्री. संजय महाभारत में हाल सुनाते थे , यह तो on the spot फीडबैक दे रहे थे.

Intro खत्म हुआ तो कविताओं का सिलसिला शुरू हुआ रिनी के साथ.


Rini

Priority poetess थी . चंद घंटों में ट्रेन पकड़नी थी मगर तब भी आई थी PACH में. तकिया - रात में हर किसी का साथी, खामोश रह कर हर किसी के दिल की बात सुनता है. 13 तरह से 13 अलग अलग कहानी कहता तकिया रिनी की ज़ुबानी. पहले प्यार की यादें, टूटे दिल से आँसुओं को संभालता, एक पत्नी के दिल में उसके पति की कमी को महसूस कराता. ज़िन्दगी का पूरा सफ़र आँखों के सामने झलक आता है न जब तकिये पर बाल टूट कर गिरते हैं ? रात के अँधेरे में दो प्यार करते लोगों की बातें सुनता है वो. हम लोग तो बस सुनते ही रहे . अनूप फिर भी नहीं सुधरे. बीच में इतना बोल रहे थे की दिपाली ने पीछे से इनका मुँह बंद कर दिया था और एक हाथ में कुशन ले लिया था की अगर ज़रूरत पड़ी तो सर पर यह भी दे मारेंगे.

                             

एक ग़ज़ल आम आदमी पार्टी के नाम आदित्य के शब्दों में सुनो तो ज़रा. सौम्या ने मकता , मलता पर फ़ास्ट ट्रैक कोचिंग तो दो थी मगर मेरी समझ में नहीं आई. लेकिन पता लग गया की ग़ज़ल गानों में ही नहीं, कविता में भी होती है. आम आदमी पार्टी की अच्छाईओ और पसंद न आने वाली बातों का हिसाब किताब. निज़ामुद्दीन की दरगाह और उस लड़के के ज़िक्र ने सबकों कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया पता ही नहीं चला.



PACH नहीं, इस बार PACHAM हो गया. AM मतलब Awesome Music. इस poetry का एकदम क्लासिक debut अभिषेक के गिटार के साथ. पेशे से तो खुद को कॉपीराइटर कहते हैं मगर जब अपने लिए लिखते हैं बस जादू बिखर जाता है..न न.. बस बजाते हैं अपना गिटार.पहले तो अपनी कॉर्बेट यात्रा सुना कर मस्त समां बना दिया. ऐसा लगा जैसे सारा कॉर्बेट हौज़ ख़ास में ही आ गया. वो बत्तख , हाथी , न दिखने वाला हर बार का शेर जिसके पंजों के निशां दिखा कर हर गाइड कहता है "यह देखिये निशान ". कॉर्बेट से वापस आये ही थे की गिटार उठा कर जो तार छेड़े तो पूरे 3 मिनट बस ख़ामोशी से सब, दम साधे हुए बस सुनते रहे संगीत में खुलती खुशियों के पैकेट को..खोला, खाया, खत्म.. 15 सेकंड तक बजती तालियों ने कुछ बोलने का मौका ही नहीं दिया.



मैं कहाँ था ?? अरे अगला नंबर मेरा ही था. इस बार न एहसास थी मेरे पास और न ही रात को समझने की बात. सिर्फ 12 लाइन में दिल की बात कहने वाली कविता जो " कभी " सच्चाई कह जाती है. औरों की तरह re run की फरमाइश तो नहीं हुई मगर पिछली बार की तरह इस बार का सन्नाटा भी बिना कुछ कहे हुए बहुत कुछ बोल गया. मुझे जवाब तब मिला जब प्रयास ने यह कहा की उसने भी कोशिश की थी यह सब लिखने की मगर कह नहीं पाया. आज मेरी उन लाइन्स ने दिल कि वो कशमकश पूरी कर दी. तालियों से दूर, किसी के लिए इससे बड़ा इनाम कुछ नहीं होता.


पारिवारिक जोड़ी अगली थी - वही अनूप और दिपाली की duet जुगलबंदी वाली कविता. Speciality है इन लोगों यह तो, इनका मुकाबला कोई नहीं कर सकता. बिना इस duet के महफिल पूरी नहीं होती. फिर प्यार के अल्फाज़ चले तो हम भी चल दिए. जब यह दोनों शुरू होते हैं तो बस वक़्त को थाम लेते हैं. पहली खत्म हुई तो दूसरी का नंबर आया. औरों ने पहले भी सुनी होगी शायद मगर मैंने तो पहली बार सुनी-याद शहर. पता नहीं किसको ज़्यादा याद किया जा रहा था- शहर को या शहर को देखते हुए उस इंसान को जो साथ हो तो एक शहर में ही दुनिया मिल जाती है. याद शहर की गलियों से गुज़रते हुए , उन पुराने मकानों , दरवाजों को दिखवाते हुए अनूप ले गए मुझे मेरे बचपन के शहरों में. ऐसा लगा जैसे सब पुराना मेरे सामने आकर खड़ा हो गया हो. दिपाली और अनूप याद शहर को दिल्ली ही ले आये. कुछ तो बात है इनमें, इतनी लम्बी कविता में भी लय बनी रहती है और इंसान इसकी गहराई में बस डूबता ही चला जाता है.



रोहिनी - tweetathon winner इस बार की. बेहतरीन tweets थे उसके. उसने भी ग़ज़ल ही पढ़ी . टाइटल था " One Word " , फॉर्मेट मेरे लिए नया था मगर फिर भी कुछ नया मिला सुनने को. एक छोटी सी बेहद खूबसूरत डायरी में लिखी थी. सबसे पहले Aavika चहकी - वही " मेरा नया फ़ोन " वाली छोटी सी लड़की. PACH वाले इसे एंटरटेनमेंट चैनल कहते हैं, मैंने इसे नाम दिया - बोन्साई. साइज़ कॉम्पैक्ट है मगर किसी बड़े पेड़ की तरह है.


बड़े चुपके से आयीं वो, किसी को खबर भी नहीं हुई. दबे पांवों आ कर महफ़िल में जम गयी " प्रतिभा ". अब वो आ गयीं तो योगेश कौनसा दूर थे ? 1 मिनट में वो भी हाज़िर. शुरू किया उन्होंने गाँव का वो सिलसिला की बस पहुँच जाएँ आप खेतों में फसलों के बीच, सर पर रखा हुआ गठ्ठर , ठंडी हवा में खेत में रोटी खाने का आनंद पेड़ के नीचे बैठ कर, मास्टरजी की वो छड़ी पड़ना, रोज़ उनसे मार खाना, वो बिच्छू का डंक मारना.



गोविन्द शुरू हुआ अगले नंबर पर. इतनी देर से पीछे एक कोने में बैठ कर मिल्क पाउडर खत्म कर रहा था - for instant energy. न... उसकी " नन्नो " आगे नहीं बढ़ी थी, अभी वहीँ ही है, उतनी सी ही. मुझे नहीं पता था की बेरोज़गार होने में भी इतना मज़ा है. उसके दोस्त ने नौकरी छोड़ी और इसने एक मस्त, हल्की सी कविता लिख डाली उस पर. काम न करने का भी अपना ही मज़ा है. यह वाली भी नन्नो की तरह छोटी ही थी. बिना मिल्क पाउडर गटके बोल गया वो...पाउडर की चिंता मत करो..रूद्र इतनी देर से भूख के मारे पेन चबा रहा था. गोविन्द जब सुना रहा था जब मिल्क पाउडर वो खत्म कर रहा था. किसी को खबर भी नहीं थी मगर पीछे मेरा, गोविन्द, रूद्र, नेहा, करन का एक अलग ही गुट बना हुआ था. हम अपने ही तरीके से मज़े कर रहे थे.



किसी फैशन फोटोग्राफर को कविताओं के साथ देखा है? तो प्रयास को देखिये. एक लम्बा सा बन्दा , कुर्ता और जीन्स, गले में कैमरा और हाथ में कविता. रहगुज़र शुरू की इसने और पहली लाइन खत्म होते होते दिल में घर कर गया सफ़र जो उस कविता में था. मुझे नहीं लगता की मैंने सफ़र और रास्ते को इतनी खूबसूरती से बयान करती कविता पहले कहीं सुनी हो.



शोभित भी था इस बार, पिछली बार की चल दी तो नहीं थी अभी. एक नयी ही कविता ले कर आया था. पिछली बार किसी लड़की से शादी की ख्वाहिश थी, इस बार एक पंडित जी के आशीर्वाद से शादी भी हो गयी और लड़का भी. मगर कविता खत्म होते होते पंडित जी की टाँग में फ्रैक्चर करवा ही दिया. लाटरी का पैसा बाँटने से बच गया.



कुनाल 3 कविताओं के साथ आया था. एक अपनी, एक अंकल की लिखी हुई और एक आकृति की भेजी हुई बैंगलोर से. Choice हमारे ऊपर थी की हम क्या सुनना चाहते थे. अब जब अंकल की कविता है तो कुनाल वाली को कौन घास डालेगा ? Rejected.. 3 महीने बिस्तर पर आराम करते हुए लिखी गयी थी " अधूरे ख्वाब ". जब हम ऐसी हालत में होते हैं जब आराम करना मजबूरी हो जाती है तो सच में हम उन अधूरे ख़्वाबों की तरफ पलट कर देख पाते हैं की जिंदा रहने की जद्दोजहद में कुछ भूल गए हैं. अगला नंबर आया आकृति की "Seize the day " का. टाइटल ही काफी है यह समझाने के लिए की पल को बस जी लेने की तमन्ना है.



हम लोगों में यह जादू है की जहाँ भी महफ़िल जमाते हैं वहाँ पर लोग बस हम लोगों से जुड़ जाते हैं. विवेक आये तो थे बस एक किताब देखने, हम लोगों के साथ के 10 मिनट कब घंटों में बदल गए न उन्हें पता चला और न ही हमें. दूर बैठे दो और लोग थे एक कोने में. लड़के का नाम तो सुनाई नहीं दिया था मगर लड़की का शायद ईशा था. जाते जाते वो भी एक नदी के सफ़र को बयान कर गयी और बज गयीं तालियाँ . माहौल भी सही था. बस के सफ़र में लिखी थी उसने और trekking पर जा रही थी. मतलब कि कहते हैं न कि एकदम अनुकूल वातावरण. क्या बात....क्या बात...क्या बात...


पॉपुलर डिमांड पर शोभित से `चल दी` फिर से चलवा डाली सबने. लोग बीमारियों से परेशान होते हैं मगर यहाँ तो लोग इन पर कविता ही लिख डालते हैं.


Rahul and abhishek

राहुल ने chickenpox पर लिखा, बिंदियों कि लाली ने कब हँसा हँसा कर लोटपोट कर दिया कौन जाने?? " तू चल मैं आता हूँ " - शायद यह ही सोच रहे थे अभिषेक. तभी तो अब डेंगू पर कविता की बारी थी. बीमार होना एक तरफ, वो सब याद दिला दिया जो अक्सर हम लोग बेहद बीमार होने पर करते हैं. कहीं घूमने जाने का मन , पुराने बिछड़े दोस्तों से मिलने कि चाहत, परिवार के साथ थोड़ा और वक़्त गुज़ारने कि इच्छा. दूसरे शब्दों में कहूँ तो अपने लिए जीने का मन. होता यह हर किसी के साथ है. प्यार है आपको? धड़कते दिल को इंतज़ार रहता है न जब वो कहती है मिलने को किसी वक़्त पर ? रह रह कर नज़रें घड़ी कि तरफ ही चली जाती हैं. समय रुक जाता है. जिस किसी के साथ यह हुआ है वो दूसरी कविता " 9 or so" में खो ही जायेगा . 2 ?? बस ?? नहीं जी 3 .. तीसरी अभी बाकी थी. प्यार को समर्पित कुछ और अल्फाज़. 3 in 1 पैक था इनका. एक Audio version आया मनमोहन जी का. पिछली बार जो हमने लत लगाई थी उन्हें उसी का नतीजा था कि फ्लाइट में थे , मगर फिर भी अपनी " चाहत " रिकॉर्ड करके भेजी थी. साँस रोके सब सुने जा रहे थे . सामने नहीं थे वरना वाह वाही तो ज़रूर देते.


" यार तुम सब ऐसा क्यूँ करते हो यार " ?? और चेहरे को हाथों में छुपा लिया. यह ही reaction दिपाली दिए जा रही थी थोड़ी थोड़ी देर बाद. पिछली बार Aavika `मेरा नया फ़ोन ` कह कह कर repeat कर रही थी और इस बार यह काम दिपाली बखूबी कर रही थी.


नवीन जी का " इंतज़ार " शुरू हुआ तो मुझे ऐसा लगा जैसे कि आज तो बस रोमांस की बरसात हो कर ही रहेगी. यश चोपड़ा की पिक्चर वो नहीं कह पायीं जो इसने कह दिया. आज जिसको देखा वही इंतज़ार कर रहा था किसी का, या फिर किसी के इंतज़ार में. " ख्याल " दूसरी थी जिसका re run हुआ क्यूंकि इतनी बढ़िया थी और सौम्या ने मिस कर दी. और कोई सुने न सुने मगर सौम्या का सुनना ज़रूरी है वरना फिर से सुनानी तो पड़ेगी ही.
                            

मुकुल भाई - पिछली बार चुप था मगर इस बार अपने साथ पिछली मुलाकात की यादें बटोर कर लाया था. 15 दिन पहले की मस्ती फिर ताज़ा हो गयी. नबीला का उनके ट्रेडमार्क स्टाइल में स्वागत हुआ गाने से साथ और उनका PACH प्रेम लोगों को पता चला जब उन्होंने अपने PACH ग्रन्थ को पढ़ना शुरू किया.
                              

प्रतिभा को कैसे भूलते हम ?? कुछ ही दिनों में जन्मदिन था उनका तो बर्थडे गिफ्ट तो देना बनता है न ? हमने जितने प्यार से उन्हें तोहफा दिया, उन्होंने उससे कहीं ज्यादा प्यार से उसको लिया. आकिब के जन्मदिन का बर्थडे केक कैमरे के रूप में. अब जब मिले हैं तभी जश्न मना लेना चाहिए , अपने को तो बहाना चाहिए. दिल चाहता है में एक डायलाग था " हम केक खाने के लिए कहीं भी जा सकते हैं ". एक गिफ्ट भी मिला उसे- Aavika की मेहनत. हाथ से बनाया एक छोटा सा डब्बा जिसमें आकिब के बारे में scrolls भरे पड़े हुए थे...बेहतरीन.. इमोशनल कर दिया.



बंगाली में लिखी अपने मन की हालत रूद्र ने पढ़ी. बंगाल की बातें, सब कुछ, छोटी से छोटी चीज़ें जो जान होती हैं वहाँ की- मिठाई, मछली, 50 पैसे का सिक्का , पीली वाली टैक्सी.. अपनी ज़िन्दगी उतार डाली उसने पन्नो पर. थोड़े ब्रेक के बाद दिपाली ने शुरू की पंजाबी में.." छन्ना".Language change as you say. मुझे समझ नहीं आती पंजाबी तो क्या करूँ यार ? कोशिश सराहनीय थी. मेरे जैसी हालत गोविन्द की भी थी. खत्म होने के बाद पूछा , " बात चने की हो रही थी न ? " . मेरी हँसी छूट गयी मगर करते भी क्या ? नॉनस्टॉप बैठे सुन रहे थे. Fuel के लिए चाय, कॉफ़ी चल रही मगर liquid diet पर कब तक रहते ? दिमाग सच में बाजे बजा रहा था.



मागो की " मेकअप " तैयार थी. पता नहीं लड़कियों के ऊपर इतनी डिटेल कैसे लिख देते हैं? मैंने तो सोचा था की detailed analysis मैं ही कर सकता हूँ. अगला नंबर PACH के ऊपर गुजरात से आया. Mr . Rajgor की हमसे कभी मुलाकात नहीं हुयी थी, आज तक कभी नहीं मिले थे मगर फिर भी हम लोगों के बारे में हमसे ज्यादा जानते थे. CIA , FBI, RAW, FSB, SCOTLAND YARD... पता नहीं कहाँ पहचान थी या पक्का हम लोगों में से ही कोई informer है.
                                

पिछली बार भी रुलाया था, इस  बार भी रुला गया सबको. कॉलेज की ज़िन्दगी 3 पन्नो में समेट तो गया " सुधान्सू " मगर हर एक को आँसुओ का तोहफा दे गया. कॉलेज की और उस वक़्त के मज़े सब याद आये. सिर्फ मुझे ही पता है की कितनी मुश्किल से रोका था अपने आप को रोने से. 
करन की broken claw, कमल की शुद्ध हिंदी वाली और नेहा की कैनवस  ने अच्छी वैरायटी दी. बिलकुल चाट की तरह- खट्टी, तीखी. मज़ा आया . 


आस्था - वही डरी , सहमी सी लड़की. इस बार पहले से confident और इस बार अकेली नहीं अपनी बहन निष्ठा के साथ. आस्था पिछली बार अपने सवालों की कविता के जवाब ले कर आई थी...और यह जवाब दिए थे उन्हें उनके गुरूजी ने. Confidence था इस बार उनमें और वो साफ़ झलक रहा था. हमारा शुक्रिया अदा किया पिछली बार के लिए और यह सब उनके दिल से आ रहा था, कहने की ज़रुरत ही नहीं थी. निष्ठा के लिए शायद नया था PACH .. कोई बात नहीं, वक़्त लगेगा और फिर आदत पड़ जाएगी.




चाँद और रात की रोमांटिक जोड़ी नेहा की तरफ से . हिंदी में उसकी पहली. हाय मैं तो बस गया.. एक के बाद एक गज़ब का रोमांस और emotions .



दिवाली आने वाली है . यही सोच कर aavika ने लिखी होगी " आज तो sunday है न ". लड़की धमाका कर गयी. सन्डे के दिन बस तुम , मैं और मेरा प्यार थोड़ी शरारत के साथ... Concept यह ही था . हर इंसान की ख्वाहिश होती है की कुछ ऐसा ही प्यार करने वाली लड़की उसकी ज़िन्दगी में आये. Aavika हर उस ख्वाहिश को जैसे हकीकत बना गयी. पक्का Libran होगी .. मेरे दिमाग में पहला यह ही ख्याल आया. इतनी छोटी छोटी बातों को ज़हन में रख कर लिखी थी बातें. यह बोन्साई कुछ अलग ही है.



ऐन वक़्त पर एक मेहमान जुड़े हमसे. आज़म नाम उनका.सुनते रहे हमको . खत्म सौम्या के जज्बातों के साथ हुयी महफ़िल मगर सुधान्सू की तरह रुला गयी सबको. श्रुति को रोते हुए देखा तब अंदाज़ हो गया था मुझे Intensity का.

" यार तुम सब ऐसा क्यूँ करते हो यार ?? "

PACH की लड़कियों को महारत हासिल है चलते चलते रुल्वाने में. सुधरेंगी नहीं. केक काटा आखिरी में. मेरा दिमाग तो कब का shutdown मार चुका था. पिछली बार 5 .30 घंटे थे... इस बार 7 . मेन , external सारे concentration के टैंक खाली हो चुके थे. विदा ले कर चले तो प्रतिभा ने रोक दिया. कहने लगीं की उन्हें PACH 8 के मेरे हिसाब किताब का इंतज़ार रहेगा. हक्का बक्का सा खड़ा यह ही सोच रहा था की अभी तो लिखना शुरू भी नहीं किया और एडवांस बुकिंग पहले ही हो गयी. उनको मैंने बताया भी कि इस बार शायद वक़्त लगे तो कहने लगीं कि कोई बात नहीं, जब भी आप लिखो इत्मीनान से, हम पढ़ेंगे. अब इस इंतज़ार के आगे मैं क्या कहूँ ? लिखना तो पड़ेगा ही यार. जब कोई इतनी उम्मीद से इंतज़ार करे तो .


अनूप जी को जब बताया कि PACH 8 भी आ जायेगा औए एक surprise के साथ तो उनके चेहरे की ख़ुशी देखने वाली थी. मुझसे तो बयान नहीं होती. कभी कभी आप महसूस कर ही लेते हैं की कोई दिल से कितना खुश है. कुनाल के साथ बात करते करते मेट्रो तक पद यात्रा की और दूरी तब पता चली जब ग्रीन पार्क की जगह हम दोनों Aiims स्टेशन पहुँच गए . किशोर कुमार का गाना याद आ गया - जाना था जापान पहुँच गए चीन समझ गए न और लोग कहते हैं की बातों में सिर्फ लेडीज ही रास्ता भूल जाती हैं.


मैं इन सब की तरह लम्बी कविताएँ नहीं लिख पाता मगर फिर भी दिल की बात कहने की कोशिश करता हूँ. अभी तक समझ नहीं पाया की यह shwetabh blogger को जानते हैं या shwetabh poet को ? 2 ही बार तो मिला हूँ बस.. थोड़ा और वक़्त लगेगा. मगर जो भी हो , इनके लिए जो जैसे हैं वो उसी रूप में अच्छे हैं. यह है PACH.
PACH 9 का इंतज़ार . मगर अब शायद जल्दी से दिमाग के मदरबोर्ड और प्रोसेसर को अपग्रेड करवाना पड़ेगा. नए नए लोग जुड़ रहे हैं, घंटे बढ़ रहे हैं और हम मुश्किल से 2-3 चाय या कॉफ़ी में ही पूरी PACH की महफ़िल काट रहे हैं, बस खो कर. अगली महफ़िल तक का इंतज़ार.
खोला , खाया , खत्म के बगैर यह सब अधूरा सा लगेगा तो लीजिये सुनिए ये ....
 
PACH 8 : गिटार, खाली कप और दोस्त PACH 8 : गिटार, खाली कप और दोस्त Reviewed by Shwetabh on 3:03:00 PM Rating: 5

7 comments:

  1. Awesome shwetabh..thoroughly detailed..:D

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  2. I love this!
    Thoroughly awesome, maza aa gaya :D

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  3. padhke na.. maze hi aa gaye!!! am sooo full with things now! :D
    thank you soo much!

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  4. awesome poem bro IT TOOK ME A WILE TO DECODE HINDI BUT YA it was worth it :-)

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  5. Shwetabh, thanks for adding me to your Pach8 minutes. I know the painful efforts applied behind portraying an event by writing.Thanks for doing this.I don't know any of you personally yet I know many minute things about PACH ppl,cause you all are having mask-free identity. one can read from your glowing,fragile,innocent and sometimes pained faces, what you are. I hope to join and enjoy one of it,soon.

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