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दिल की कलम से.... Twitter और मदद की वो रात


डूबते को तिनके का सहारा... या मैं कहूं की मुझे twitter का सहारा. वाकया थोड़ा पुराना है मगर मेरे ज़हन में अभी भी ताज़ा है जैसे कल की ही बात हो.

एक दिन रात में ऑफिस से वापस आया तो तबियत कुछ डामाडोल लग रही थी. गले में खराश थी यानी की पक्की गारंटी की बुखार आ कर रहेगा. जैसे तैसे खाना खाया. नींद मगर आने का नाम ही नहीं ले रही थी. कुछ देर बाद भयंकर दर्द शुरू हुआ- पहले कमर , फिर पीठ, फिर जबड़ा और फिर आँखें लाल होना शुरू हो गयीं. बुखार धीरे धीरे बढ़ रहा था. बुखार में नींद आ तो जाती है वैसे भी मगर पहले यह कमबख्त दर्द तो कम हो, किसी लायक नहीं छोड़ा इसने. कमज़ोरी इतनी हो गयी की उठने की हिम्मत नहीं हुई, घर वालों को आवाज़ लगाना तो दूर की बात है. किसी तरह उठ कर मेडिकल बॉक्स उठाया और दवा देखनी शुरू की. चाहिए थी Crocin . एक खा लेता तो नींद तो आ जाती. सुबह डॉक्टर के यहाँ राउंड लगा देता. मगर हाय री किस्मत. जो Crocin मिली वो भी 2 दिन पहले Expire कर गयी थी. सिर्फ Deepondol और Bruffen बची थी. मुझे एक धेला जानकारी नहीं थी की कौनसी दवा का क्या specific use है. ज़्यादातर दवा avoid करता हूँ जब तक डॉक्टर लिख कर न दे. 

आँखें लाल हो रहीं थी तो मोबाइल पर गूगल बाबा की भी मदद नहीं ले सकता था.. बहुत strain पड़ रहा था. फिर याद आया twitter . फेसबुक से तेज़ है , महा सटीक अगर सही इंसान मिल जाए मदद के लिए तो. मैंने सिर्फ एक status लिख कर छोड़ दिया की क्या बुखार में Brufeen ली जा सकती है? रात के 12 बजे कौन online मिलता ? 2 min के अन्दर एक जवाब आया - " लोग भी कितने अजीब हैं, twitter पर मेडिकल हेल्प ले रहे हैं ". श्वेता थी . श्वेता- मेरी बहुत अच्छी दोस्त, बेहद ख़ास, उन चुनिन्दा लोगों में से या मैं कहूँ की उन लड़कियों में से जो मदद के लिए तैयार मिलेंगी. आज तक कभी मुलाकात नहीं हुई मगर एक अच्छी दोस्ती का रिश्ता है. मैं थोड़ा सा खिसका हुआ, वो बेहद सुलझी हुई. Facebook पर तो दोस्तों की भरमार है जो मदद कर सकते थे मगर उस वक़्त कितने online यह पता नहीं था. श्वेता को हंसी आ रही थी और मेरी हालत वैसे ही खराब थी. मैंने बस इतना लिखा की मुझे बेहद तेज़ बुखार है और Paracetamol नहीं है मेरे पास, तभी पूछ रहा हूँ. 

                          

बस इतना पढ़ना था की उसने मेरे status को Retweet कर दिया (Facebook के शेयर option की तरह). Twitter पर मेरे साथ वाले सिर्फ 84 थे, उसके पास 900 +. एक मिनट के अन्दर ही मदद आनी शुरू हो गयी. जिस जिस को दवा के बारे में जानकारी थी , सब अपने जवाब भेज रहे थे. मेरी हालत उस वक़्त वैसी ही थी जैसी लोंगेवाला में पंजाब रेजिमेंट के जवानों को वायुसेना के आने पर हुई थी. मदद आ गयी. अमेरिका से किसी बन्दे का जवाब आना शुरू हुआ. उसने मेरा बुखार पूछा , दर्द कहाँ था, मेरे पास कौनसी कौनसी दवा थी, power क्या थी उनकी.. Bruffen 400 और 600 के पत्ते थे. सुबह तक के आराम के लिए उसने मुझसे एक 400 की गोली खा लेने को कहा और अलविदा कह कर चला गया. मुझे बस नींद चाहिए थी, और जबड़े के दर्द से थोड़ा आराम. गोली खा कर सो गया. सुबह कम से कम उतनी तो हालत हो गयी थी की डॉक्टर के पास जा सकता था.


श्वेता को जब भी उस बात के लिए thanks कहता हूँ तो चल हट पागल, दोस्त होते किस लिए हैं ? कह कर टाल देती है. उस रात पता नहीं Twitter ज्यादा ज़रूरी था या श्वेता का online होना ? मैं दिल से उसे आज भी अपनी जान बचाने का ज़िम्मेदार मानता हूँ. उन चाँद घंटों में कुछ भी हो सकता था सुबह तक. किसी को भनक भी नहीं लगती इतने तेज़ बुखार में. 

हम दोनों का अभी आमना सामना होना बाकी है. हो सकता है जल्द मुलाकात हो और मैं उसे कह कर दिल से शुक्रिया अदा कर सकूँ. लोग कहते हैं Facebook , Twitter सब बेकार है. मैं कहता हूँ की अगर आप इनका सही और सटीक इस्तेमाल करना सीख जाएँ तो इनसे बेहतर मदद के हथियार आपको कहीं नहीं मिलेंगे. दुनिया के कोने कोने तक पहुँच, सारे देशों में.


Technology चाहें जितना भी बढ़ जाए...एक चीज़ फिर भी हमेशा अनमोल और खूबसूरत रहेगी- दोस्ती . वही जिसकी वजह से मैं आज यह वाकया लिख रहा हूँ . वो दोस्त और दोस्ती दोनों की वजह से...
दिल की कलम से.... Twitter और मदद की वो रात दिल की कलम से....  Twitter और मदद की वो रात Reviewed by Shwetabh on 12:56:00 PM Rating: 5

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