Memories

The places where moments reside

मैं कश्मीर नहीं सियासत हूँ...



Lal chowk

मैं कश्मीर नहीं सियासत हूँ

मैं स्वर्ग में आग भड़काकर राजनीतिक रोटियाँ सकने की कवायद हूँ

मैं अपने फायदे के लिए कश्मीर के अवाम को रोज़ रोज़ शहर बंद 
करने का हुक्म हूँ

मैं हर चप्पे पे चिपके इश्तेहार में कश्मीर छोड़ देने की धमकी का 
खौफ हूँ

मैं काले झंडे लहराकर कर्फ्यू लगाने की सियासत हूँ

मैं उन्ही झंडों की साज़िश हूँ जो एक ही मुल्क में रहते बाशिंदों के 
देश्भक्त और देशद्रोही होने की पहचान कराते हैं

मैं उन्ही काले झंडों की आड़ में अपने मुल्क की बर्बादी का और दूसरों की 
साजिशों की आवाज़ हूँ

मै कश्मीर नहीं सियासत हूँ

मैं सियासत की बिसात पर चलाया गया मोहरा हूँ

मैं नज़रबंद लोगों के हाथों की कठपुतली हूँ

मैं दूसरे मुल्क की नापाक ख्वाहिश और अपने मुल्क की राजनीति के 
पाटों के बीच पिसता प्रदेश हूँ

मैं छोटी सी बात को तिल का ताड़ बनाने की साज़िश हूँ

मैं एक भड़काई हुई भीड़ के हाथों में पत्थर दे हिंसा भड़काने की
सियासत हूँ

मैं लोगों के हाथों में बस्ते, किताबें, थैलों की जगह पत्थर वाली आम
बात हूँ

मैं एक छोटी बच्ची को प्यादा बना भीड़ में भेजकर फौजियों के सामने 
खड़ा कर देने की कोशिश हूँ

बिगड़ते हालात में उसी बच्ची की मौत पे सियासी सफ़र लम्बा करने 
वाले नेताओं की सोच हूँ




मैं मौका देख बाहर आने वाले मानवाधिकार वालों का दोगलापन हूँ

मै कश्मीर नहीं सियासत हूँ

मैं रोज़ रोज़ लाल चौक पे लगाये कर्फ्यू का सन्नाटा हूँ

मैं ज़बरदस्ती के प्रदर्शन की भीड़ में बेवजह अपने मुद्दे का तमाशा हूँ

मैं अखबारों में छपने वाली वो सफ़ेद जगह की सच्चाई हूँ जो आँखों के
सामने होकर भी मायने नहीं रखती क्यूंकि वो काले अक्षर ज्यादा 
मायने रखते हैं 

मैं न्यूज़ चैनलों की चिल्लाती बहस की चिल पुकार के बीच एक 
खामोश ज़बा हूँ

मैं खुद को पत्रकार कहने वाले लोगों की विपरीत सहानुभूति के बीच 
दम घुटता माहौल हूँ

मै कश्मीर नहीं सियासत हूँ

मैं भीड़ से घिरे फौजी की खुद को न बचा पाने की झुंझलाहट हूँ

मैं मुठभेड़ में शहीद जवानों का खून हूँ

मैं आतंकवादियों के मरने पे लोगों के मातम और सिपाही की शहादत 
पर पसरा सन्नाटा हूँ

मैं दुश्मनों को मारने के लिए एक घर को जला देने की मजबूरी में उस 
घर से निकलता धुआं हूँ

मैं दहशतगर्दों के किये धमाके में उड़ता जिस्म हूँ

मै कश्मीर नहीं सियासत हूँ

मैं पर्यटकों के इंतज़ार में डल पे जमी बर्फ हूँ

मैं प्रकृति के कहर के आगे मौजूद विवशता हूँ

मैं कश्मीर नहीं , कुछ समय बाद शायद किताबी जन्नत हूँ 




The story behind this- Kashmir is always the bone of contention for which no explaination is needed. These lines portray the stark dark reality of the state which is there these days and kashmir is misused these days by everyone and if this continues one day it would remain as heaven only in history and books. It time to stop and ponder over its state, you`ll find kashmir speaking its problem in every line.

मैं कश्मीर नहीं सियासत हूँ... मैं कश्मीर नहीं सियासत हूँ... Reviewed by Shwetabh on 9:12:00 PM Rating: 5

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