Memories

The places where moments reside

तुम अच्छी लगी .... a letter to my wife







कल तुमसे मिलने आया था. पहली नज़र देखा था तुमको...दिल ने कहा, 

तुम अच्छी लगी. सोचा कि पता नहीं तुमको मैं कैसा लगा मगर तुम जैसी 

भी लगी अच्छी लगी. तुम्हारे भी कुछ सपने होंगे की कोई राजकुमार जैसा 

आएगा. तुम्हारे उस सपने को तोड़ना नहीं चाहता मगर मैं कोई राजकुमार 

या शहजादा नहीं हूँ. बस एक साधारण सा लड़का हूँ. मुझे नहीं समझ आता

यह arrange marriage का फंडा. लड़की को एक नुमाइश की चीज़  बना 

कर  रख दिया है जिसे हर लड़के के सामने चाय की ट्रे ले कर भेज दिया 

जाता है ताकि पसंद कर ले. नापसंद होने पर क्या उसका दिल नहीं टूटा 

करता ?? क्या उसे नहीं लगता की उसमें कोई खामी है ? लड़के को भी तो 

घबराहट होती है की पता नहीं क्या होगा ? मैं भी ऐसा ही कुछ सोच कर 

गया मगर तुम अच्छी लगी.


अगर मेरा हमसफ़र बनी तुम ज़िन्दगी भर के लिए तो ज्यादा कोई बड़ी 

ख्वाहिश नहीं मेरी, वो सब तो कब की मर चुकी हैं. बस कुछ छोटी छोटी 

आरजू हैं, शायद तुम्हारे साथ वो पूरी हो सकें. पत्नी नहीं, मेरी सबसे अच्छी


दोस्त बनना तुम. मुझसे कम नहीं, मेरे बराबर हो तुम . मेरी ज़िन्दगी में 


दोस्ती की काफी अहमियत है. यह एक रिश्ता है जो सब खुद चुनते हैं तो 


मैं 
भी यह ही चाहता हूँ. वक़्त देना चाहता हूँ तुम्हें मुझे समझने 
का.. 


जितना 
तुम चाहो. मेरे साथ रहना बस. अपना नाम बदलना चाहो न चाहो 


यह पूरी तरह से तुम्हारी मर्ज़ी है. चाहो तो मेरा नाम अपने नाम में जोड़ 


सकती हो. मैं कभी तुम्हारा गुज़रा वक़्त नहीं पूछुंगा, तुम भी मत पूछना 


मुझसे मेरा. उस वक़्त के घाव बहुत गहरे हैं.. बहुत दर्द देते हैं, छोटी से 


छोटी बात पर हरे हो जाते हैं. दोनों को बहुत तकलीफ देंगे. अगर तुम 


मुझसे इश्क करने लग जाओ तो मुझे वक़्त देना तुम्हारा प्यार लौटाने के 


लिए. कुछ ऐसी चोटें हैं जिनको मैं दोबारा सहना नहीं चाहता. फिलहाल 


नहीं और ज़िन्दगी 
भर के लिए नहीं.


तुमसे यह सब अभी इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकि तुम अच्छी लगी. बाद में 

शायद कभी कहने की हिम्मत न हो और कुछ अनकही बातों की वजह से 

कहीं फासला न बढ़ जाये और एक दूसरे को खो न दें. मैं perfect नहीं हूँ , 

शायद तुम्हारे सपनो के हिसाब से नहीं हूँ मगर जैसा हूँ ऐसा ही हूँ. लोग 

थोड़ा पागल भी कहते हैं. अपने ख्यालों को लिखने का पागलपन है , कभी 

रात बेरात बस कलम उठा कर शुरू हो जाता हूँ, ज़ेहन में हर वक़्त कुछ न 

कुछ चलता ही रहता है. कोई अपना नहीं है जिससे यह ख्याल बाँट सकूँ. 

क्या लिखता हूँ यह मत जानना कभी. दिल हल्का करने का बस यह ही 

तरीका है. बाकी तो मेरी ज़िन्दगी तो बस एक बंद , खुली किताब है जिसे 

पढ़ पाना मुश्किल है. जो मेरे करीबी हैं वो भी इस किताब में सही लिखी 

लिखावट नहीं समझ पाते, इतना नकाब चढ़ा रखा है जज्बातों पे.


बाकी तुम पे छोड़ता हूँ. अगर लगे की मेरे साथ अपनी ज़िन्दगी की 

शुरुआत कर सकती हो तो तहे दिल से स्वागत है , नहीं तो कोई गिला 

शिकवा नहीं.. मैं भी समझता हूँ की हर लड़की की अपनी चाहत होती है – 

ज़रुरत नहीं की कोई पसंद आ ही जाये. समझूंगा की एक बेहतरीन लड़की 

से मिल के आया था ... क्यूंकि “ तुम अच्छी लगी ”...



तुम अच्छी लगी .... a letter to my wife तुम अच्छी लगी .... a letter to my wife Reviewed by Shwetabh on 12:43:00 PM Rating: 5

2 comments:

  1. I really like ur posts and the efforts you put in writing them :)
    http://docdivatraveller.blogspot.in/

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