कुछ खामोशियाँ हैं यूँ हवाओं में
इंतज़ार करती तुम्हारे या मेरे बोलना का
लफ़्ज़ों की भीड़ में, खामोशियों का सन्नाटा है
तुम बोलो या मैं बोलूं....इसी कशमकश में यह जज़्बात हैं
बहुत कुछ कहना है तुम्हें...और बहुत देर तक सुनना है मुझे
मगर यह कमबख्त दिल बयान नहीं कर पाता कुछ
कह चुकी हो तुम मगर फिर भी तुम्हारा इज़हार सुनना है मुझे...हर
बार , हर दिन
इस हवा में भी खामोशियाँ कुछ कहना चाहती हैं तुमसे
कुछ कहो न..
तुम्हारी आँखों का झुकना और तुम्हारा मंद मंद मुस्कुराना
ऐसा लगता है जैसे कोई शाम ढ़लने से पहले अपने पूरे शबाब पर है
हिचकिचाहटों की खामोशियाँ हैं
यह सुर्ख लाल होंठ तुम्हारे कुछ कहने कि कोशिश में थरथराते हुए ,
जैसे कोई शराब का प्याला बस छलकने को है
वो हौले हौले चाय का गिलास पकड़ना और ख़ामोशी से उसकी
चुस्कियां लेना
खामोश तुम भी हो, खामोश मैं भी हूँ
शायद यह डर है कि मेरी बात तुम्हें कहीं लग न जाए
कशमकश है बहुत तुम्हें जानने की, पहचानने की
जैसी तुम हो , वैसे तुम्हे अपनाने की
मेरी ख़ामोशी इसलिए है कि जो तुम हो वही बने रहो
मेरी ख़ामोशी का हर हर एक लफ्ज़ , तुम्हारे प्यार के लिए
शायद तुम्हारी कशमकश भी इसी लिए है
तेरी ख़ामोशी और मेरी ख़ामोशी कि लहरें आपस में टकराती हैं, न
जाने क्या कहना चाहती हैं ?
इन खामोशियों में आवाज़ बहुत है, इन खामोशियों में गूँज बहुत है
शायद यह पहुँचती तुम तक भी हैं जो पहुँचती मुझे तक हैं
यह जो खामोशियाँ हैं तुम्हारे और मेरे बीच में वो सारी बयाँ हो जाती
हैं इन निगाहों से
जब तुम मुझे और मैं तुम्हें देख रहा होता हूँ, शायद सारी बातें कहने
को और सुनने को उसी में बयाँ हो जाती हैं
यह खामोशियाँ....
खामोशियाँ......
Reviewed by Shwetabh
on
11:12:00 PM
Rating:

Good one..God Bless
ReplyDeleteBeautifully penned 👍👍
ReplyDeleteBeautifully penned 👍👍
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ReplyDeleteReally nice !
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